
जनता की उम्मीद बनाम नेताओं की राजनीति
लेखक: मनीष शर्मा, रोज़गार बाबू न्यूज़ डेस्क
Rojgar Babu:भारत की संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है। यहाँ बैठकर देश के सबसे बड़े नेता, सांसद और मंत्री जनता के लिए नीतियाँ बनाते हैं, क़ानून तय करते हैं और देश को आगे बढ़ाने का रोडमैप तैयार करते हैं।
लेकिन हकीकत क्या है❓
हर बार जब संसद का सत्र चलता है तो आम जनता उम्मीद करती है कि अब उसके सवालों के जवाब मिलेंगे –
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बेरोज़गारी का हल क्या होगा?
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किसानों के कर्ज़ की समस्या कैसे सुलझेगी?
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महंगाई क्यों बढ़ रही है?
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महिलाओं और युवाओं की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी?
लेकिन इन उम्मीदों के बजाय हमें क्या देखने को मिलता है❓
👉 सांसद आपस में कुत्ते-बिल्ली की तरह भिड़ जाते हैं,
👉 नारेबाज़ी, पोस्टर, माइक तोड़ना, वॉकआउट करना,
👉 और आख़िरकार सत्र बार-बार स्थगित हो जाता है।
💸 संसद का खर्च: मिनट-मिनट पर करोड़ों का नुकसान
संसद को चलाना कोई आसान या सस्ता काम नहीं है। संसद सत्र चलाने में भारी-भरकम खर्च होता है और ये पैसा सीधा जनता की जेब से आता है।
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संसद का एक मिनट चलाने का खर्च है ₹2.5 लाख।
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अगर एक दिन में संसद 6 घंटे काम करे तो कुल खर्च =
360 मिनट × ₹2.5 लाख = ₹9 करोड़ (लगभग)। -
हाल ही में सिर्फ 3 दिनों की कार्यवाही बाधित हुई और देश का ₹23 करोड़ से ज्यादा बर्बाद हो गया।
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कई बार पूरे सत्र के दौरान इतना हंगामा होता है कि ₹100 करोड़ से भी ज्यादा जनता का पैसा बर्बाद हो जाता है।
👉 ये पैसा कहाँ से आता है❓
सीधा आपके और मेरे टैक्स से।
जब कोई आम आदमी पेट्रोल पर टैक्स देता है, बिजली के बिल पर टैक्स देता है, या रोज़मर्रा की ज़रूरतों पर जीएसटी भरता है – वही पैसा संसद में नेताओं की लड़ाई में बर्बाद होता है।
🧑🤝🧑 सांसदों की सुविधाएँ: जनता की जेब से
सांसदों को केवल सैलरी ही नहीं मिलती, बल्कि दर्जनों तरह की सुविधाएँ मिलती हैं –
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हर दिन बैठने पर ₹2,000 का भत्ता।
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दिल्ली में फ्री बंगला या फ्लैट।
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बिजली, पानी, गैस – सब मुफ्त।
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साल में कई बार फ्री ट्रेन और हवाई यात्रा।
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दफ्तर चलाने के लिए स्टाफ और खर्चा भी सरकार देती है।
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टेलीफोन, कंप्यूटर, गाड़ी और सुरक्षा की सुविधा अलग।
इन सबका खर्च भी जनता के टैक्स से उठाया जाता है।
👉 सवाल यह है: अगर सांसद जनता की समस्याओं पर काम करें तो इन सुविधाओं का हक़ बनता है, लेकिन जब वे केवल हंगामा करते हैं तो क्या ये सब सही है❓
🤯 संसद – हल का मंच या हंगामे का अखाड़ा?
संसद का असली मकसद है –
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क़ानून बनाना,
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जनता की समस्याओं पर चर्चा करना,
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और देश के भविष्य की दिशा तय करना।
लेकिन हकीकत में संसद अब अक्सर एक राजनीतिक अखाड़ा बन चुकी है, जहाँ:
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एक पार्टी दूसरी पार्टी पर आरोप लगाती है,
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विपक्ष सरकार पर चिल्लाता है,
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सरकार विपक्ष को “देशविरोधी” कहती है,
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और अंत में कोई ठोस नतीजा निकलता ही नहीं।
इस हंगामे में सबसे ज्यादा नुकसान किसका होता है❓
👉 आम जनता का।
⚡ हंगामे के नतीजे
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जनता का पैसा बर्बाद – हर मिनट लाखों रुपये बर्बाद होते हैं।
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लोकतंत्र की गरिमा पर चोट – संसद जैसी गंभीर संस्था का स्तर गिरता है।
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महत्वपूर्ण मुद्दे टलते हैं – बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे विषयों पर कोई ठोस बहस नहीं होती।
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जनता में गुस्सा और अविश्वास बढ़ता है – लोगों को लगता है कि नेता सिर्फ अपना फायदा देखते हैं, जनता का नहीं।
✅ संसद में होना चाहिए यह बदलाव
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Disruption पर जुर्माना – जो सांसद जानबूझकर हंगामा करता है, उसका भत्ता काटा जाए।
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No Work, No Pay Rule – अगर संसद में काम नहीं हुआ, तो सांसद को सैलरी और भत्ता न मिले।
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जनता के मुद्दों की प्राथमिकता – हर सत्र में पहले बेरोज़गारी, किसानों और महंगाई जैसे मुद्दों पर चर्चा अनिवार्य हो।
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Time Bound Debates – हर विषय पर तय समय में बहस और वोटिंग होनी चाहिए।
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Live Report Card – जनता को यह पता चले कि उनका सांसद संसद में कितनी बार बोला, कितने सवाल पूछे और क्या योगदान दिया।
संसद केवल नेताओं का मंच नहीं है – यह जनता की आवाज़ है।
जब संसद में नेता आपस में कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ते हैं, तो असल में वे जनता की उम्मीदों से खेलते हैं।
संसद का हर मिनट जनता के टैक्स से चलता है।
👉 जब जनता मेहनत करके टैक्स देती है, तो नेताओं को भी मेहनत करके काम करना चाहिए – हंगामा नहीं करना चाहिए।
याद रखिए –
“हंगामा नहीं, हल चाहिए!”
यही नारा हर भारतीय की आवाज़ होना चाहिए।
अगर संसद फिर से जनता के लिए काम करने लगे, तो भारत का लोकतंत्र और मजबूत होगा और जनता का भरोसा भी कायम रहेगा।
अगर आप संसद की कार्यवाही या सांसदों की जानकारी देखना चाहते हैं, तो लोकसभा की आधिकारिक वेबसाइट और राज्यसभा की आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते हैं।
भारत की संसद के बारे में अधिक जानने के लिए भारत सरकार का संसद पोर्टल देखें।
Very good post
thanku prince ji
बिल्कुल सही बात! संसद को जनता की आवाज़ का मंच बनना चाहिए, न कि राजनीति का अखाड़ा। टैक्स का पैसा हंगामे में बर्बाद होना शर्मनाक है। बदलाव की ज़रूरत है – ‘हंगामा नहीं, हल चाहिए!
बिलकुल! जनता का पैसा हंगामे में उड़ाना नेताओं के लिए शर्म की बात है। काम नहीं तो भत्ता और सुविधाएँ बंद होनी चाहिए।
janta ka paisa loot kar apna ghar bhar rahe hai ye choor.